आज आपको हम एक ऐसी जगह चल रहे हैं जहां वातावरण शांत है, कल-कल बहती नदी का किनारा है और प्रकृति के आंचल में विचरते वन्य जीव हैं, देशी विदेशी पक्षियों का कलरव है. अन्य टूरिस्ट स्पॉट की तरह पर्यटकों की रेलमपेल नहीं है. हम बात कर रहे हैं होशंगाबाद जिले के टूरिस्ट स्पॉट मढ़ई की. पचमढ़ी को सतपुड़ा की रानी कहा जाता है. पचमढी रानी है, तो मढ़ई सतपुड़ा की राजकुमारी.
भोपाल से करीब 130 किलोमीटर दूर मढ़ई सतपुडा नेशनल पार्क का हिस्सा है. डेढ हजार वर्ग किलोमीटर में फैले विशाल सतपुड़ा के जंगल में इस राजकुमारी मढ़ई का साम्राज्य करीब डेढ सौ वर्ग किलोमीटर में है.
भोपाल से करीब 130 किलोमीटर दूर मढ़ई सतपुडा नेशनल पार्क का हिस्सा है. डेढ हजार वर्ग किलोमीटर में फैले विशाल सतपुड़ा के जंगल में इस राजकुमारी मढ़ई का साम्राज्य करीब डेढ सौ वर्ग किलोमीटर में है.
भोपाल से पचमढी के रास्ते में सोहागपुर से पहले एक भारतीय आत्मा पं. माखनलाल चतुवेर्दी का गांव माखननगर यानी बाबई पड़ता है. बाबई से आगे बढ़ने पर मुख्य मार्ग से दाहिनी तरफ का रास्ता मढ़ई को जाता है. करीब 20 किलोमीटर चलने पर एक खूबसूरत नजारा आपके सामने होता है, यह मढई है.
कल कल बहती देनवा नदी और दूर पहाडियों का नजारा, नदी में लहराती सरपट भागती वोट घाटी से ऐसी दिखती है मानो नीले आसमान में राकेट रफ्तार भर रहा हो. नदी के उस पार वन विभाग का गेस्ट हाउस है. इस पार रिसॉर्ट और कुछ होटल भी बन गए हैं. घाट पर ही आपको सतपुडा टाइगर रिजर्व के काउंटर में भुगतान करने पर बोट, गेस्ट हाउस और भ्रमण के प्रवेश पास मिल जाते हैं. बोट आपको उस पार छोड देती है. गेस्ट हाउस के कक्ष भी मढई को घेरे तीन नदियों देनवा, सोनभद्र और नागद्वारी के नाम पर हैं. गर्मियों में भी इन नदियों को सदानीरा बनाए रखने के लिए तवा डेम से पानी छोड़ा जाता है. देनवा नदी किनारे शाम का अदभुत सौंदर्य आपको स्तब्ध कर देता है, प्रसन्नता से स्तब्ध. चीतल के छौने परिसर में घूमते आपके आगे-पीछे किसी मासूम बच्चे की तरह दुलार करते हैं, नीलगाय आपसे पूछती सी लगती है, हमें क्या लाए हैं?
कल कल बहती देनवा नदी और दूर पहाडियों का नजारा, नदी में लहराती सरपट भागती वोट घाटी से ऐसी दिखती है मानो नीले आसमान में राकेट रफ्तार भर रहा हो. नदी के उस पार वन विभाग का गेस्ट हाउस है. इस पार रिसॉर्ट और कुछ होटल भी बन गए हैं. घाट पर ही आपको सतपुडा टाइगर रिजर्व के काउंटर में भुगतान करने पर बोट, गेस्ट हाउस और भ्रमण के प्रवेश पास मिल जाते हैं. बोट आपको उस पार छोड देती है. गेस्ट हाउस के कक्ष भी मढई को घेरे तीन नदियों देनवा, सोनभद्र और नागद्वारी के नाम पर हैं. गर्मियों में भी इन नदियों को सदानीरा बनाए रखने के लिए तवा डेम से पानी छोड़ा जाता है. देनवा नदी किनारे शाम का अदभुत सौंदर्य आपको स्तब्ध कर देता है, प्रसन्नता से स्तब्ध. चीतल के छौने परिसर में घूमते आपके आगे-पीछे किसी मासूम बच्चे की तरह दुलार करते हैं, नीलगाय आपसे पूछती सी लगती है, हमें क्या लाए हैं?
यहां ढलती शाम और धीरे धीरे आती रात और मोबाइल नेटवर्क का अभाव आपको सुकून से भर देता है.
मढई के वन प्रांतर में तफरीह की सफारी तीन तरह की हैं. जिप्सी में गाइड के साथ 22 किमी, 45 किमी या फिर दिन भर का फेरा. हाथी की सफारी है. आधा रास्ता जिप्सी से और फिर टाइगर के दीदार के लिए हाथी पर सवार होकर रास्ता छोड़ वन प्रांतरों की सैर. जिप्सी की सधी चाल कई दफा उंचे नीचे रपटीले उबड़-खाबड़ हो जाने वाले रास्ते पर जरा भी टेड़ी नहीं होती. गाइड और वाहन चालक में गजब का तालमेल. कभी गाइड को तो कभी ड्रायवर को कुछ ऐसा दिखा जो टूरिस्ट को दिखाना है, फौरन आहिस्ता से जिप्सी बैक कर बताते हैं. ये देखिए जंगली गिलहरी, वो सबसे उंचे पेड़ की सबसे उंची टहनी पर, साढ़े तीन फुट की गिलहरी. हमारी निगाह टिक जाती है, इस गिलहरी पर. पल-पल में एक पेड़ से दूसरे पर बंदर से भी तेज गति से छलांग लगाती, कभी काला तो कभी सुनहरा रंग बदलती.
सतपुडा टाइगर रिजर्व में 46 टाइगर हैं, एरिया डेढ हजार वर्ग किमी है, दिख जाए तो सौभाग्य की बात है. हां अक्टूबर से फरवरी के बीच हर दूसरे तीसरे दिन मढ़ई में बाघ दिखता ही दिखता है.
सफारी की वापसी की राह पर चीतलों का समूह, चीतल के छोटे से छौने, नीलगाय आप भूला न पाएंगे. आप भी एक बार मिलिएगा जरूर सतपुड़ा की राजकुमारी से.
Updates:
BSNL Network is available now.
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For Stay:
Forest Rest House,Madhai
Madhai WildLife Lodge http://madhairesort.com/
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Go with family/group.
Best time is October to January
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